Tuesday, September 8, 2020

बार बार सपनों में आता रहा यह रेलवे स्टेशन

काश रहने का घर भी इसी तरह का बन पाता 
लुधियाना: 8 सितंबर 2020: (रेक्टर कथूरिया//मुझे याद है ज़रा ज़रा)::
बहुत से मित्रों और दुसरे लोगों का कहना कही की आखिर इस ब्लॉग का अर्थ क्या है? क्या होगा इसमें? समझना थोड़ा मुश्किल सा लगता है कि इस ब्लॉग का सीधा सा मतलब केवल मेरे अपने मन की संतुष्टि है। लगता है उन बातों को लिखूं जो हमें अपने जन्म के स्रोत की तरफ ले जाएं। उन सभी बातों से बहुत ही अलग और दूर जो हम अपने दैनिक जीवन में किस न किसी मतलब के लिए कहते या सुनते हैं। साड़ी उम्र निकल जाती है लेकिन यही समझने से हम चूक जाते हैं कि हमारा जन्म किस मकसद को लेकर हुआ था। क्या करना था और अब तक क्या किया? 
जन्म हुआ तो जीवन भी मिला। धीरे धीरे बालपन का वह रोना धोना कम होता चला गया। मुस्कराने के बाद हंसी का सिलसिला भी शुरू हुआ। उस समय मालूम नहीं था कि यह मैं नहीं हंस रहा वास्तव में नियति मुझ पर हंस रही है। किस ने सोचा था दुखों के पहाड़ मिलेंगे। किस ने चाहा था कि रास्ते गम के सागरों की तरफ मुड़ते चले जाएंगे। निराशा का अंधेरा छाता चला गया। इस गहन अंधेरे में महसूस होने लगा कि यह कालिमा न होती तो दिन की रौशनी का मज़ा भी नहीं होता। गमों का अहसास ही खुशियों  का मज़ा बढ़ा देता है। यादें उस समय उजाले देने लगती हैं जब हर तरफ अँधेरे छा रहे होते हैं। बस कुछ इसी तरह का ज़िक्र होगा मेरी पोस्टों में। 
मैंने जीवन स्रोत को समझने के लिए यादों का सहारा लिया है। वैसे जाति स्मरण के लिए ओशो तो जहां मेडिटेशन की सिफारिश भी करते हैं। ओशो की बातें अंतर्मन को कुरेदती हैं तो बहुत कुछ जागने लगता है। ऐसा ही कुछ अनुभव होता है अन्य सूफी या मिस्टिक लोगों के साहित्य को पढ़ते हुए। एक बारगी तो लगने लगता है कि हम किसी अज्ञात ऊंचाई पर पहुँच गए। शायद यही अहसास हमें मज़ा भी देता है। थोड़ी देर के बाद जब हम फिर दुनियादारी में भटक जाते हैं तो फिर अचानक झटका लगता है जैसे उस अज्ञात ऊंचाई से अचानक नीचे गिर गए। इस ऊंचाई को छूने, कुछ देर के लिए उस में तै पाने जैसा आनंद भरा अहसास लेने और फिर अचानक नीचे गिर जाने के सदमे.......   
इस ब्लॉग में मैं इस तरह के अहसास की बातें ही करता हूं।  अपने सपनों की बातें करता हूं।  अतीत की बातें और भविष्य की बातें। 
इस बार भी जिस तस्वीर को आपने इस पोस्ट के आरम्भ में देखा उसे क्लिक किया है Unsplash  से जुडी हुई  Linda L Jackson ने। मैं उससे कभी मिल नहीं पाया। बहुत से अन्य लोगों से मिलने का सपना भी 
अभी तक पूरा नहीं हुआ। लिंडा से मिलने की कोशिश जारी है लेकिन उसकी तस्वीरों का मैं दीवाना हूं। 
वह कमाल के विषय चुनती है और बहुत ही अद्भुत ढंग से फोकस बनाती है।  देखो तो बस देखते ही रह 
जाओ। 
यह तस्वीर एक रेलवे स्टेशन की है। इस स्टेशन को मैंने बहुत बार सपनों में देखा। इतना देखा कि इस 
तरह का घर बनाने की एक चाहत मन में पनपने लगी। शायद समझ आने लगी कि यह बातें सपनों में ही
अच्छी लगती हैं। अब इतने बरसों के बाद पता चला कि यह तस्वीर इंग्लैण्ड के नार्थ शायर में साथी एक 
इलाके  नार्थ शायर मूर की है। वहां एक गांव है ग्रोसमोंट। उसी गांव के लोगों को रेल की सुविधा  लिए 
इस रेलवे स्टेशन को 1835 में बनाया गया था। मौजूदा रेलवे स्टेशन 1845 में बना। फिर समय के कई 
उतराव चढ़ाव देखता हुआ यह स्टेशन लोगों को रेल सुविउधा देता रहा। सन 1965 में इसके मुख्य भाग 
को बंद कर दिया गया लेकिन समय की गति कहां रूकती है! सन 1973 में इसे दोबारा खोल दिया गया। 
बहुत से टीवी चैनलों और अख़बारों में भी इस रेलवे स्टेशन की चर्चा हो चुकी है। देखना है कि जीवन रहते इस 
रेलवे स्टेशन को देखा जा सकेगा या नहीं?          -रेक्टर कथूरिया 


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