Saturday, September 14, 2024

क्या सचमुच मिलती है यादों के उजालों से रौशनी?

क्यूं नहीं भुला पाते हम ज़िन्दगी की यादें?


चंडीगढ़
//मोहाली: 14 सितंबर 2024: (रेक्टर कथूरिया//मुझे याद है ज़रा ज़रा)

जनाब बशीर बद्र साहिब के यूं तो कई शेयर प्रसिद्ध हुए हैं लेकिन एक शेयर यादों से सबंधित है जो जान जन की जुबां पर चढ़ गया। बशीर साहिब कहते हैं: 

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो!

न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए!

बशीर साहिब का यह शेयर ज़िंदगी में एक रुमानियत सी लेकर आता है। इस शेयर   खौफ भी है। इस शाम में अँधेरा छाने का भी यकीन सा है। इस अंधेरे का सामना करने के लिए उन्हें रौशनी की उम्मीद नज़र आती है उस दौर की यादों से जो अब रहा ही नहीं। उस जाते हुए वक़्त  या जा चुके अतीत को एक तरह से वापिस बुलाते हुए वह अपनी महबूबा से कहते हैं कि 

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो! न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाए!

अब देखना यह है कि क्या सचमुच यादों से अँधेरी और अकेली ज़िन्दगी में उजाला हो भी जाता है क्या? वैसे तो बुढ़ापे की दस्तक तक से अधिकतर लोग डरने लगते हैं लेकिन शायरों की कल्पना और संवेदना कुछ ज़्यादा ही होती है। वह अँधेरे की कल्पना भी सहजता से कर लेते हैं और उसका  सहजता ज़िंदगी में अगर अंधेरा छा जाए तो बचपन की यादें, किशोर उम्र की यादे, स्कूल की यादें, दोस्तों की यादें, जवानी की यादें---यह सारा सिलसिला बुढ़ापे में ही क्यूं अपना रंग दिखाता है--ज़िंदगी कैसे इतनी प्रभावित हो जाती है इन यादों से....क्या इन का किसी भी किस्म का कोई  लाभ हो सकता है? इनसे होने वाला उजाला केवल कल्पना मात्र होता है या फिर सचमुच उजाले की किरणें रास्तों को रौशनाने लगती हैं!

बचपन, किशोरावस्था, स्कूल, दोस्तों और जवानी की यादें बुढ़ापे में इतने प्रभावशाली क्यों हो जाती हैं, इसका कारण यह है कि ये यादें हमारी ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील दौर से जुड़ी होती हैं। यह वो समय होता है जब हम सबसे ज्यादा अनुभव करते हैं, सीखते हैं, और हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है। जब हम बुढ़ापे में पहुंचते हैं, तो हमारे पास समय होता है और हम उन यादों को फिर से जीने लगते हैं। इन यादों में भावनात्मक और मानसिक जुड़ाव इतना गहरा होता है कि वे जीवन के अंतिम पड़ाव में भी हमारे साथ रहती हैं। गुज़रे हुए उस  सुनहरी दौर को याद करते ही हमारे अंदर एक ऊर्जा भी आती है। विजय और संघर्ष की भावना भी जागती है। हमें फिर से एक नै दुनिया  दिखाई देने लगती है। 

इन गहरी यादों का आध्यात्मिक लाभ भी हो सकता है। वे हमें आत्ममंथन करने का भी अवसर देती हैं, जिससे हम अपने जीवन के अनुभवों को समझ सकते हैं और उनसे सीख भी सकते हैं। यादें हमें यह समझने में मदद करती हैं कि हमने अपने जीवन में क्या खोया और क्या पाया। यह आत्मविश्लेषण हमें आध्यात्मिक रूप से परिपक्व बनने में  तो सहायता करता ही है इसके साथ ही हमें दुनियादारी के जहां रहस्य भी समझ आने लगते हैं। हम धोखे, फरेब दोगले चेहरों को सही वक़्त पर समझ पाने में सफल हो जाते हैं। 

इसके अलावा, गुज़रे हुए वक्त की ज़ेह यादें हमें जीवन की अस्थायित्वता का बोध कराती हैं और यह हमें वर्तमान क्षण में जीने की प्रेरणा दे सकती हैं। यादों के माध्यम से हम अपने जीवन के असली उद्देश्य को पहचान सकते हैं और अपने अंतर्मन से जुड़ सकते हैं। 

इस प्रकार, ये यादें केवल अतीत का प्रतिबिंब नहीं हैं, बल्कि आध्यात्मिक विकास का एक महत्वपूर्ण साधन भी हो सकती हैं। हम  परिवर्तनशील हालात से कर शाश्वत की पहचान करना सीख जाते हैं। शाश्वत में जीना एक महत्वपूर्ण जीवन होता है। 

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