लोहड़ी के पावन पर्व पर बहुत कुछ याद आ रहा है
खरड़ में नूरविला के एक बेहद ठंडे कमरे में से सभी के नाम एक पत्र
लोहड़ी के बहुत से निमंत्रण इस बार भी मिले हैं। आयोजन भी ज़ोर शोर से चल रहे होंगें। इस नूरविला इलाके में जहां इस वक़्त हूं वहां भी अमीरों के एक छोटे से क्षेत्र में लोहड़ी का उत्सव जोशोखरोश के साथ जारी है। आज के आयोजनों में लोहड़ी के पर्व का प्राचीन संदेश तो लुप्त हो चुका है लेकिन हुड़दंग, दिखावा और शोरशराबा जारी है। मैं किसी आयोजन में नहीं गया। बहुत सी उदास और चिंतित करने वाली खबरें सामने हैं। भविष्य क्या होगा समझ नहीं आ रहा।
फ़िलहाल लौटते हैं लोहड़ी के आयोजनों पर। कुछ मित्रों ने और कुछ जानकारों ने लोहड़ी के सुअवसर पर अपनी शुभकामनाएं ह्बेजी हैं--अपने स्नेह हबरे संदेश भेजें हैं--हर बार की तरह इस बार भी वही पुराना दोहराव ही है...! जवाब भी लिखना चाहा उसी हिसाब से नकली ख़ुशी से भरा जवाब-नकली उत्साह से भरा जवाब पर बात बन ही नहीं रही... ! नकली और बनावटी बातों को सोचते हुए असली दुःख और दर्द फिर सामने आ जाते हैं। कुछ इस तरह से शुरू किया संदेश:
प्रिय मित्रो!
सम्माननीय मित्रो!
आपको ही इस दिन की हार्दिक बधाई।
मित्र आज फिर त्यौहार है जबकि ज़िंदगी में त्यौहार आता ही कब है--बस खुद को भूलने का बहाना ही तो है--!
न त्योहारों में अब वो पहले जैसी जान है--न ही मन में कोई उत्साह बचा है।
उम्र रेत की तरह हाथों से निकलती जा रही है--एक दिन सांस की डोरी भी टूट जाएगी।
किसी के पास हमारे अंतिम संस्कार में आने का वक्त भी नहीं होगा..!
कुछ लोग खुश भी होंगें और मन ही मन कहेंगे--अच्छा हुआ मर गया साला--!
बस दुनिया की इस हकीकत का बार बार इसी तरह दोहराव ही तो देखा--!
इस दुनिया से श्मशान अच्छा जो हकीकत तो बताता है---!
भगवान शिव का नज़दीकी स्थान शमशान आज भी शांति देता है..!
मन था आज श्मशान में जा कर किसी चिता की आग में इस दुनिया की हकीकत को देखने का फिर से प्रयास करें लेकिन वहां तक जाने की आज हिम्मत नहीं हो रही!
शायद वही वक्त नज़दीक आ रहा है जब चार लोग मिल कर इस बोझ को वहां तक पहुंचाते हैं..हम जैसे लोगों के लिए शायद वही होता है असली त्यौहार--लोहड़ी हो या दीपावली--!
बाकी ज़िंदगी तो बस उस शायरी जैसी ही है जिसे जनाब कृष्ण बिहारी नूर साहिब ने बहुत ही खूबसूरती से लिखा:
ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं!
और क्या जुर्म है-पता ही नहीं!
इतने हिस्सों में बंट गया हूँ मैं
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं
ज़िंदगी मौत तेरी मंज़िल है
दूसरा कोई रास्ता ही नहीं
जिसके कारण फ़साद होते हैं
उसका कोई अता-पता ही नहीं
कैसे अवतार कैसे पैगंबर
ऐसा लगता है अब ख़ुदा ही नहीं
ज़िंदगी अब बता कहाँ जाएँ
ज़हर बाज़ार में मिला ही नहीं
सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे
झूठ की कोई इँतहा ही नहीं
धन के हाथों बिके हैं सब क़ानून
अब किसी जुर्म की सज़ा ही नहीं
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो
आईना झूठ बोलता ही नहीं
अपनी रचनाओं में वो ज़िन्दा है
‘नूर’ संसार से गया ही नहीं
- कृष्ण बिहारी 'नूर' बहुत पहुंचे हुए शायर रहे आज भी उनका नाम है।
फ़िलहाल तो लोहड़ी का त्यौहार फिर ऐसे ही हालात में आया है जिसे पंजाबी में कुछ यूं कहा जाता है--
लोहड़ी वाली रात लोकी बालदे ने लोहड़ीयां!
साडी काहदी लोहड़ी--अक्खां सजनां ने मोड़ीयां!
दुनिया तो फरेबों से भरी है इसलिए अब दुनिया से इश्क हो भी तो कैसा हो--चलो फिर से कलम के साथ ही इश्क करें--देश और देश की मासूम जनता के साथ इश्क करें वही बेचारी मासूम जनता जिसे हर चुनाव में हर दल छल कर चला जाता है।
वही जनता जिसे आज़ादी के सात आठ दशकों के बाद भी कभी निशुल्क इलाज का लोलीपोप दिया जाता है--कभी निशुल्क बिजली कई--कभी मुफ्त अनाज का--लेकिन कोई उसे उसके पाँव पर खड़ा करने को तैयार नहीं--पत्रकार भी मुफ्त सफ़र और मुफ्त इलाज तक नहीं पा सके।
आओ इस हालत को बदलने के लिए कलम उठाएं--कलम के धर्म और कलम के फर्ज़ को याद करते हुए कलम से ही कहें--
तेरा इश्क है मेरी आरज़ू, तेरा इश्क है तेरी आबरू
तेरा इश्क मैं कैसे छोड़ दूं, मेरी उम्र भर की तलाश है
दिल इश्क, जिस्म इश्क और जान इश्क है
ईमान की जो पूछो तो ईमान इश्क है
तेरा इश्क मैं कैसे छोड़ दूं, मेरी उम्र भर की तलाश है!
शायद अपने सिर पर कलम के धर्म का जो कर्ज़ है उसे उतरने में कुछ तो सफल हो सकें--!
ज़रा सोचना मित्र>
स्नेह और सम्मान के साथ--
रेक्टर कथूरिया
जनाब कृष्ण बिहारी नूर जी की झलक देखिए ज़रा यहां साथ ही इस लिंक को भी सुनिए देखिए जनाब--बहुत गहरी बातें हैं..