Received From Mind and Memories on Thursday 9 October 2025 at 02:30 AM and Posted on 12th October 2025
बहुत दिलचस्प हैं इप्टा वाले राकेश वेदा
जालंधर नवांशहर मार्ग पर स्थित है खटकड़कलां। पर्यावरण भी बहुत ही मनमोहक और इतहास भी सभी को अपना बना लेने वाला। मुख्यमार्ग पर ही स्थित है शहीद भगत सिंह जी की यादें ताज़ा करने वाला शानदार स्मारक।
इससे पहले कि काफिला चल कर शहीद के पुश्तैनी घर तक जाए हम लोग इस रुट और अन्य प्रोग्राम को डिसकस कर रहे थे। मैं वहां कवरेज के लिए गया था। कैमरे के साथ साथ एक नोटबुक भी मेरे पास थी। जो जो लोग बाहर से आए थे उनके नाम स्टेशन और फोन नंबर उसी में नोट किए जा रहे थे। चूंकि मेरे कानों में काफी समय से समस्या चल रही है इसलिए मुझे डर रहता है कि कहीं नंबर या नाम गलत न सुना जाए। मैं जिसका नाम या नंबर नोटों करना चाहूँ उसके सामने अपनी नोट बुक कर देता हूं।
नाम के साथ वेदा शब्द पढ़ कर मुझे दिलचस्पी और बढ़ गई और मैंने पूछा आप ने भी द्विवेद्वी , त्रिवेदी और चतुर्वेदी के नरः वेद पड़े हुए हैं क्या? बात सुन कर मुस्कराए और कहने लगे ऐसा कुछ नहीं है। वास्तव में मेरी पत्नी का नाम वेदा है। मैं अपने नाम के उनका नाम जोड़ लेता हूँ और वह अपने नाम के साथ मेरा जोड़ कर वेदा राकेश लिखती हैं।
उस दिन हम सभी लोग शहीद भगत सिंह जी के पैतृक घर पर भी गए। इसके बाद छोटी बड़ी गलियों में से होते हुए पास ही स्थित एक गांव में बने गुरुद्वारा साहिब के हाल में भी। वहां नाटकों का मंचन भी हुआ। जनाब बलकार सिद्धू ने अपने भांगड़े वाली कला और बीबा कुलवंत ने अपनी आवाज़ की बुलंदी से अहसास दिलाया कि क्रान्ति आ कर रहेगी। शहीदों का खून रंग लाएगा। इसके बाद और दोपहर का भोजन भी यादगारी रहा। लंगर सचमुच बहुत स्वादिष्ट था।
रात्रि विश्राम बलाचौर/ /नवांशहर की किसी महल जैसी कोठी में था। इप्टा के चाहने वाले बहुत ज़ोर दे कर हमें वहां ले गए थे। रात्रि भोजन के बाद कुछ मीठा सेवन करते समय किसी ने कहा कि अब हालात बहुत कठिन बनते जा रहे हैं। सत्ता और सियासत शायद खतरनाक रुख अख्त्यार कर सकती है। यह सब सुन कर राकेश जी ने उर्दू शायरी में से ग़ालिब साहिब की शायरी भी सुनाई और दुष्यंत कुमार जी के शेयर भी। इस शायरी से सभी में नई जान आ गई।
अब कोशिश है जल्द ही उनसे मिलने लखनऊ जाया जा सके। वैसे तो भेंट का इत्तिफ़ाक़ कहीं अचानक बी हो सकता है किसी अन्य जगह पर भी। --रेक्टर कथूरिया